नेट न्यूट्रेलिटी क्‍या है, इससे आपको क्‍या फर्क पड़ेगा ?

Net neutrality

ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब से लेकर हर कहीं ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ की चर्चा हो रही है। यहां तक एआईबी यानी ऑल इंडिया बकचोद ने इसे लेकर एक वीडियो भी बना दिया  है। जो यू ट्यूब पर काफी देखा जा रहा है।

नेट न्‍यूट्रैलिटी यानी इंटरनेट को समानता का अधिकार देना, इसे एक तरह से इंटरनेट की आजादी भी कह सकते हैं  जिसके लिए टेलिकॉम कंपनियों के माथे पर पसीना आना शुरु हो गया है। इसके बारे में बात करने से पहले ये जानना जरूरी है कि आखिर ये ‘नेट न्यूट्रैलिटी’ है  क्‍या और इसे लेकर इतनी बहस क्‍यों चल रही है।

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क्या है नेट न्यूट्रैलिटी
जैसा की नाम से ही आपको लग रहा होगा, नेट यानी इंटरनेट न्‍यूट्रैलिटी यानी समानता। इंटरनेट पर दी जाने वाली किसी भी सर्विस को एक नजर से देखा जाएगा। इसके लिए टेलिकॉम कंपनियों इंटरनेट में दिए जाने वाले डेटा के लिए अलग-अलग चार्ज नहीं ले सकतीं जैसे फेसबुक के लिए अलग पैक, वाट्सएप के लिए अलग।

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इंटरनेट के लिए दिया जाने वाला शुल्‍क एक हो, इसे थोड़ा विस्‍तार से समझते हैं मानलीजिए आपने अपने फोन में इंटरनेट पैक डलवाया जिसकी कीमत 200 रुपए  है अब अगर आपके पैक में सोशल नेटवर्किंग साइट नहीं चल रही हैं तो उसके लिए अलग से सोशल नेटर्वक पैक डलवाने को कंपनियां बोलेंगे यानी ऐसे ही इंटरनेट  पर हर काम के लिए आपको अलग कीमत चुकानी पड़ेगी इससे टेलिकॉम कंपनियों की जेब तो भरेगी लेकिन यूजर को एक्‍ट्रा पैसे देने पड़ेंगे।

नेट न्‍यूट्रैलिटी में सब  एक समान होगा। एक इंटरनेट रिचार्ज में उसके द्वारा चलने वाली हर सर्विस यूज़ की जा सकती है। यानी यूजर को पूरी आजादी है कि वो इंटरनेट में क्‍या प्रयोग कर रहा है। इसके अलावा इंटनेट देने वाली कंपनियां अपने हिसाब से हर सर्विस की स्‍पीड निधार्रित नहीं कर सकतीं। जैसी स्‍पीड आपको फ्लिपकार्ट की साइट में  मिलेगी वैसी ही दूसरी शॉपिंग साइट में भी मिलेगी।

टेलीकॉम कंपनियां क्‍यों नहीं चाहतीं नेट न्यूट्रैलिटी
कुछ साल पहले टेलिकॉम कंपनियों की कमाई के कई जरिए थे जैसे मैसेजिंग, कॉलिंग, ढेरों टैरिफ पैक मगर अब वाट्सएप, वाइबर के अलावा कई इंटरनेट सर्विस  की वजह से कंपनियों को काफी मुश्‍किलें आ रही हैं जिसकी वजह से उन्‍हें कमाई करने के लिए नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं।

वाट्सएप की वजह से टेलिकॉम  कंपनियों की मैसजिंग से होने वाली कमाई काफी कम हो गई है जबकि वे इसमें अपना हिस्‍सा चाहती हैं। ये बिल्‍कुल ऐसा ही है जैसे एक ही ट्रेन आमने सामने की  सीट के अलग दाम रेलवे मांगे।

उपभोक्‍ताओं के अलावा सरकार भी चाहती है नेट न्यूट्रैलिटी
दरअसल सरकारी विभागों में वाट्सएप से लेकर सोशल मीडिया काफी प्रयोग होता है खासकर नई सरकार इंटरनेट, सोशल मीडिया को लेकर काफी एक्‍टिव है ऐसे में  वो नहीं चाहती की कंपनियां ऐसे सर्विसेज़ पर अपना कब्‍जा करें। इससे कंपनियां मनमाने ढ़ंग से पैसा चार्ज कर सकती हैं।

क्‍या-क्‍या नुकसान होंगे इससे
1- आपको ज्‍यादा चैट करने के लिए एक्‍ट्रा पैसे देने पड़ेंगे।
2- हर सर्विस लिए अलग पैक डलवाना पड़ सकता है।
3- इंटनेट पैक के साथ कई दूसरे पैक डलवाने पड़ सकते हैं जैसे वाट्स एप के लिए अलग पैक, फेसबुक के लिए अलग।

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