फेसबुक पर बिछड़े भाई के मिलने वाली इस खबर को पढ़कर आपको पहली बार तो यही लगेगा कि ये किसी फिल्म की कहानी से काफी मिलता जुलता है। लेकिन ये एक जीती जागती घटना है। विजय नित्नावरे जिनकी उम्र 48 साल है एक सरकारी कर्मचारी है वे करीब 20 साल से अपने छोटे भाई को ढ़ूड़ने में लगे हुए है, इसके लिए उन्होंने फेसबुक का सहारा भी लिया जिसमें उन्हें काफी प्रयासों के बाद कामयाबी मिली।
कहानी कुछ यूं शुरु होती है….. 1996 में विजय नित्नावरे का छोटा भाई हंसराज मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो गया जिसमें बाद उसने परिवारों को बिना बताए अपना घर छोड़ दिया। विजय ने
अपने भाई के गुम होने की रिपोर्ट स्थानिए पुलिस स्टेशन में लिखावाई, जिसे वक्त विजय के छोटे भाई ने घर छोड़ा वो 15 साल का था वो तीनों भाइयों और 1 बहन में सबसे छोटा था। पुलिस रिपोर्ट लिखवाने के 15 दिनों बाद उन्हें एक चिट्ठी मिली जिसमें लिखा था “कृपया मेरी तलाश न करें. मैं ठीक हूं और कुछ बड़ा करने के बाद ही लौटूंगा.”
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विजय को ये जानकर काफी अच्छा लगा कि उनका भाई जिंदा है, लेकिन वो कहा है इसके बारे में उन्हें कोई भी सटीक जानकारी नहीं मिल सकी क्योंकि चिट्टी में लिखे पिन कोड के आखिरी दो नंबर सही नहीं थे जिससे चिट्टी किस शहर से आई है ये पता नहीं चल सका। हालाकि शुरुआत के 4 अंको से ये जानाकारी मिल गई कि ये गुजरात से आई है। विजय ने गुजरात के स्थानिय अखबारों और टीवी चैनलों पर गुमशुदगी के विज्ञापन भी दिए लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। आखिरी में विजय ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स का सहारा लिया जिसमें फेसबुक और ट्विटर पर उन्होंने अपने भाई को खोजना शुरु किया।
2016 में फेसबुक पर उन्हें महाराष्ट्र के पुणे में हंसराज नाम का एक व्यक्ति मिला जिससे संपर्क करने पर उसने विजय का बड़ा भाई होने से इंकार किया। इसके बाद विजय ने फेसबुक से उसके दोस्तों के बारे में कुछ जानकारी देने का निवेदन किया, जहां से पता चला उनमें से तीन लोग पुणे के भोसारी में टोयटा कंपनी में काम करते हैं। विजय ने मेल के जरिए तीनों से संपर्क किया लेकिन फिर भी हंसराज ने उन्हें अपना भाई मानने से इंकार कर दिया जबकि विजय को लग रहा था कि पुणे वाला व्यक्ति ही उनका भाई है।
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12 अप्रेल के दिन वे टोयटा कंपनी के प्रबंधक को मेल लिख रहे थी उसी समय उनके घर पर फोन की घंटी बजी दूसरी तरफ से हंसराज फोन पर था, विजय ने कहा हमने ज्यादा बातं नहीं कि बस रोते रहे। 12 अप्रेल को विजय पुणे गए अऔर हंसराज के परिवार को लेकर दिल्ली लौट आए।